पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२८१

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प्रिया-प्रकाश तन में होने के कारण ) रसवत अलंकार कहते हैं, यह हाल के प्राचार्य कहते हैं । परन्तु केशव ने तो रस वर्णन ही को रस- बत मान कर 'रसमय होय' परिभाषा की है। उदाहरण भी जैसे ही दिये हैं। बहुत लोग इसे अलंकार ही नहीं मानते, क्योंकि अन्य अर्थालंकारों के अभाव में ही इसकी ओर दष्टि जाती है अन्यथा नहीं (शृंगार रसवत्) मूल अन तिहारी, न पान कहौं, कछु, आनन आन ही कैसो । केशव स्याम सुजान सुरूप न जाय कहो मन जानत जैसो॥ लोचन शोभहिं पीवत जात, समात, सिहात, अधात न तैसो। ज्यो न रहात विहात तुम्हें, बलिजाल, सुबात कहौ टुक बैसो ॥५४॥ (विशेष)-कोई नायिका जिसका पति विदेश में है किसी दूसरे पुरुष ले, जो उसके पति की अनुहार का है कहती ap भावार्थ-मैं तुम्हारी ही शपथ करके कहती हूं कि मैं तुमसे कोई अन्य बात न कहेंगी, केबल इतना ही कहती है कि "सुखात कहौ टुक बैसो"थोड़ी देर् मेरे पास बैठो और मुझसे कुछ बातें करो ( जिससे मन बहल ज्ञाय ) क्योंकि तुम्हारं तन में कुछ वैसी ही शोभा है जैसी मेरे पति के सन