पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२८२

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ग्यारहवा प्रभाव में है और तुम्हारा मुख तो ठीक वैसा ही है जसा अन्य का ( मेरे पति का ) है--(स्त्रियां अपने पति को अन्य, कोई, दूसरे या इसी प्रकार के किसी दूसरे शब्द से सरण करती है, यह भारत की शिष्ट रीति है )-उस सुजान श्याम का सुरूप कहा नहीं जा सकता, जैसा है वैसा मन ही जानता है। (मगर तुम्हारा रूप भी उसी अनुहार का है अतः) मेरे लोचन तुम्हारी शोभा को पीते जाते हैं, उसमें समाते जाते हैं, सिहाते जाते हैं कि हमारा सा सौभाग्य किसी का नहीं, पर वैसी तृप्ति नहीं प्राप्त होती (जैसी निजपति के दर्शनों से होती थी, पर खैर जो कुछ है वही गनीमत है ) तुमसे बिलग होकर मेरा जी न रह सकैगा (तुम्हारे दर्शनों से कुछ तसल्ली है ) अतः मैं बलि जाती हूं, थोड़ी देर मेरे पास बैठो कुछ बातें करो, बस इतना ही चाहती हूं। (ब्याख्या) नायिका निजपति से वियोगिनी है अतः मुख्यता वियोग श्रृंगार की हुई । "प्रान तिहारी, ज्यो न रहात विहात तुम्हें, बलिजात" इत्यादि वाक्य उसकी रति उस पुरुष प्रति भी प्रगट करते हैं जिससे वह बातें कर रही है, और उससे संयोग भी है, क्योंकि दोनों एकत्र हैं। श्रतः संयोग की गौणता हुई । यही गौण संयोग वियोग का पोषक होने के कारण रसवत है। इस संयोग की वार्ता से हो उसकी विरह प्रबलता अधिक स्पष्ट होती है। (बीर रसवत्) मूल--जेहि सर मधु मद मर्दि महा मुर मर्दन कीनो । मान्यो कर्कश नरक शंख हनि शंख मुलानो ।