पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२९१

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२८४ प्रिया-प्रकाश भावार्थ -सरल है ( दूती का बचन नायक प्रति) (व्याख्या)-"मुसुकान लगी है" प्रत्यक्ष ही हास्य का जिक्र है। इसे सुनकर नायक भी जरूर हैस दिया होगा। ( शांत रसवत ) मूल-देइगो जीवन वृत्ति वह प्रभु, है सिगरे जग को जेहि दइय । आवन ज्यों अन उद्यम ते सुख त्यों दुख पूरब के कृत पइयै ।। राज औ रक सुराज करौ सब काहे को केशव काहु डरइये । मारनहार जियाक्नहार सु तो सबके सिर ऊपर हइयै ॥ ६४ ॥ शब्दार्थ-जीवनवृत्ति = जीविका, रोजी। अन उद्यम = बिना कोशिश किये। कृत - कर्म । दश्य है-दीही है। हश्य = भावार्थ-सरल और स्पष्ट है { व्याख्या)-ईश्वर पर विश्वास, कर्मफल और जगत से निर्वेद प्रत्यक्ष है। अतः शांत रस है। १८-(अर्थान्तरन्यास अलंकार) मूल-और आनिये अर्थ जहँ और बस्तु बखानि । अर्थान्तर को न्यास यह चार प्रकार सुजान ।। ६५ ।। भावार्थ-और कुछ कहकर और कुछ अर्थ लेना, यही अर्थान्तर-न्यास है। यह चार भांति का होता है। (साधारण उदाहरण) -भोरे हुँ भैह चढ़ाय चितै डरपाइये के मन क्यों ई करेगे। ताको तो केशव कारि हिये दुख होत महा,सु कहौं इत हेरो॥