पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२९२

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२८५ ग्यारहवाँ प्रभाव कैसो है तेरो हियो हरि में रहि छोरो नहीं तनु छूटत मेरो। बूंदक दूध को मान्यो है बांधि सु जानति हौं माई जायो न तरो॥६६॥ भावार्थ--कोई बजनारी यशोदा प्रति कहती है कि मै तो कभी धोखे से भौंह चढ़ाकर मन कड़ा करके अपने बच्चे को डरवाती हूं तो इस बात का मुझे कोटि भांति से महा दुःख होता है। सो मैं कहती हूं, ज़रा इधर देख, तेरा हृदय हरि के प्रति कैसा है, ज़रा ठहर, बड़ी कड़ी गांठ लगाई है छोरने से ज़रा भी नही छूटती। थोड़ा दूध लुढ़का देने के वास्ते तुने पुत्र को बांध कर मारा है, अतः मैं जानती हूं कि यह तेरा जन्माया ( व्याख्या)-"जायो न तेरो" कहा गया, पर अर्थ यह निक- लता है कि कृष्ण प्रति तेरी प्रीति नहीं है। यही अर्थान्तर- न्यास है। (चार भेद वर्णन) मुल-युक्त अयुक्त बखानिये और अयुक्तायुक्त । केशवदास बिचारिये चौथो युक्त अयुक्त ॥ ६७ ॥ भावार्थ -१-युक्त अर्थान्तरन्यास । २-अयुक्त अर्थान्तरन्यास । ३-अयुक युक्त अर्थान्तरन्यास।४-युक्त अयुक्त अर्थान्तरन्यास ये चार प्रकार हैं। १-(युक्त अर्थान्तर न्यास) मूल-जैसो जहां जु बूझिये, तैसो तहांसु आन । रूप शील गुण युक्ति बल, ऐसे युक्त बस्थान ॥ ६॥