पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/२९८

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२६२ प्रिया-प्रकाश बेटी को भोजन, भूषण रांड़ को, केशव प्रीति सदा पर ती की। युद्ध में लाज,दया अरि की,अरु बाम्हन जाति सोंजीति न नीकी। शब्दार्थ-आप कही को अपने मुख से कही हुई । पर ती परस्त्री। 'न नीकी का अन्वय सब बातों के साथ जानो। भावार्थसिद्धि अच्छी वस्तु है पर पाप की सिद्धि अच्छी नहीं, वृद्धि अच्छी है पर ऋण को नहीं, कीर्ति सुनना अच्छी बात है पर अपने मुँह से नहीं, दान देना अच्छा है पर दुःख का दान नहीं, इत्यादि अंत तक समझिये। (व्याख्या)-सिद्धि, बृद्धि, कीर्ति, दान, स्नानादि अच्छी बस्तुएं हैं, पर युक्ति विशेष से अर्थान्तर करके बुरी ठहराई गई हैं। अतः युक्त-अयुक्त अर्थान्तरन्यास है। (नोट)-हाल के श्राचार्य इसे 'तुल्य योगिता' कहेंगे। १९-(व्यतिरेकालंकार) मूल-तामें प्रानै भेद कछु, होय जु बस्तु समान । सो ब्यतिरेक सुभांति द्वै. युक्ति सहज परमान ॥ ७ ॥ भावार्थ-बराबर वाली दो घस्तुओं में कुछ भेद दिखलाना व्यतिरेक है। यह दो प्रकार का है- (१) युक्तिव्यतिरेक, (२) सहज व्यतिरेक। १--(युक्ति व्यतिरेक) मूल-सुन्दर सुखद अति अमल सकल विधि, सदल सफल बहु सरस संगीत सों । विविधि सुवास युत केशोदास श्रासपास, राजै द्विजराज तनु परम पुनीत सों।