पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३०

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पहला प्रभाव


(विशेष)-प्रवीणराय पातुरी काव्यकला में केशव की शिष्या थी, श्रतः निज शिप्या का नाम अमर करने के लिये केशव जी निश्न लिखित दाहों में उसका विशेष उल्लेख करते है। इसी प्रकार अपने एक सोनार मित्र का भी उल्लेख किया है। देखो प्रभाव ९ छेद २६ । यह कवि-निया ग्रंथ प्रवीणराय को पढ़ाने के लिये ही केशव ने रचा था, जैसा कि ने स्वयं आगे के दोहा नं०६१ मे कहते हैं। मूल रतना कर लालित सदा, परमानदाह लीन । अमल कमल कमनीय कर, रमा कि, रायप्रवीन ॥५॥ शबदाय-रतमाकर-(१) समुद्र (२) रनों का समूह । परमानन्द = (१) ईश्वर नारायण (२) अत्यन्त प्रानन्द ! कमल = (2) कमल पुष्प ( २) हाथ का एक श्राभूषण जो कलाई पर पहना जाता मोबाय-यह राय प्रवीण है कि लक्ष्मी है, क्योंकि लक्ष्मी रखाकर कार लालित हुई है तो यह भी रत्न समूह से सदा खालित रहती है ( रत्नजदित आभूषण पहने रहती है ) और लमी परमानन्द ( नारायथा) की सेवा में लीन रहती है तो यह भी अत्यन्त प्रानन्द म सदा निमय रहती है, और लक्ष्मी के में निर्मल सुन्दर कमल रहता है तो यह भी हाथ में सुन्दर कमल ( कमल नामक आभूषण) रखती है। मूल-रायप्रवीन कि शारदा, सुचि रुचि रजित अंग । वीणापुस्तक धारिणी, राजहंस सुत सग ।। ५६ ।। -शुचि = (१) निर्मल, स्वच्छ, सफेद () श्रृंगार रस शब्दार्थ-