पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३०२

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२६३ प्रिया-प्रकाश अमल (यथा) मूल-सुंदर ललित गति बलित सुवास अति, सरस सुवृत्त मति मेरे मन मानी है अदूषित सुभूपननि भूषित, सुवरण, हरनमन, सुर सुखदानी है। अंग अंग ही को भाव, गूढ भाव के प्रभाव, जाने को सुभाव रूप रुचि पहिचानी है। केशोदास देवी कोऊ देखी तुम ? नाही राज, प्रगट प्रवीनराय जू की यह बानी है ॥८॥ (नोट)-इस अलंकार में मन की बात छिपाकर बहाने के लिये कोई और बात कही जाती है, अतः दोनों में समता होना ज़रूरी है। यह समता शिलष्ट विशेषणों द्वाराही आ सकती है, अतः इस अलंकार का बहाभारी सहायक श्लेष अलंकार है। इस छंद में भी यही बात है। केशव कृत तीन चरणों का वर्णन सुनकर राजा इन्द्रजीत पूंछते हैं कि क्या तुमने किसी देवी को देखा है ( अर्थात वह वर्णन राजा को देवी का सा जान पड़ा) तब केशव कहते हैं कि नहीं राजा जी! जिसका वर्णन मैं कर रहा हूं वह प्रवीणराय की बाणी है। अतः प्रथम तीन चरणों में ऐसे शब्द लाये गये हैं जिनका अर्थ देवी और प्रवीणराय की बाणी दोनों पर समान रीति से घटित हो सके। शब्दार्थ-( देवी पक्ष ) ललित गति बलित = सुन्दर चाल वाली। सुपास-सुन्दर वस्त्र वाली। सुवृत्त - शुभ चरित्र थाली । अंग अंग ही को भाव= उसके अंग अंग से हृदय का