पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३०३

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ग्यारहवां प्रभाव दिव्य भाव प्रगट होता है। गूढभाव पहिचानी है अन्य लोगों के गुप्त भावों का तात्पर्य जानने का स्वभाव उसके चेहरे की चमक से पहिचाना जाता है ( उसके चेहरे से यह बात प्रगट होती है कि वह दूसरे का मनोगत भाव जान जाती है) (प्रवीणराय की बाणी पक्ष में ) ललित गति बलित = जैसे ललित रागिनी के बोल हो। सुबास = ? -बोलते समय मुख से सुगंध छूटती है। सुवृत्त मति-सुन्दर छंद सी (मति - मतिन =समान), सुभूषननि भूषित - सुन्दर अलंकारों वाली। सुवरण -मधुर वर्ण वाली। सुर सुखदानी = सातो सुरों को सुख देने वाली। अंग अंग हो को भाव = उस वाणी को बोलते समय शब्द शब्द से हदय का भाव प्रगट होता है (जो यथार्थ सत्य है ) । गृढभाव - गुप्त तात्पर्य । जाने को कौन समझ सकता है (अर्थात् ऐसे गढ़ व्यंग भरी वाणी होती है जिसे साधारण जन समझ नहीं सकते ) । रूपरचि पहिचानी है - मैं तो उसके चेहरे की चेष्टाओं से उस बाणी की भावोत्पादकता को पहचानता हूं। भावार्थ-(देवी पक्ष का) वह रूपवती है, सुन्दर चालचाली है, सुन्दर वस्त्र पहने है, अति रसीली और सुचरित्रा तथा बुद्धिमती है, मेरे मन को खूब पसंद आई है, निर्मल है, अदू- षित है, सुन्दर भूषणों से भूषित है, सुन्दर रंगवाली है, देव- ताओं का मन हरण करने वाली है (मनुष्यों की बात ही क्या) और सुखदा है। उसके अंग अंग से हृदय का दिव्य भाव प्रगट होता है। अन्य लोगों के गुप्तभावों का तात्पर्य जानने का स्वभाव उसके चोहरे की चमक से पहिचान पड़ता है (कि वह अंतरयामिनी है)