पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३०४

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प्रिया-प्रकाश (बाणी पक्ष का )-प्रवीणराय की वाणी सुन्दर है, ललिस रागिनी के बोलों से युक्त है, बोलते समय मुह से सुगंध निकलती है ( इससे बाणी सुगंधित जान पड़ती है ) अति रसीली है, जैले छंद पढ़ रही हो, मेरे मन को बहुत पसंद है। वह बाणी शुद्ध है, व्याकरणानुसार कोई दूषण उसमें नहीं है, अलंकार युक्त है, उस वाणी में मधुर मृदु वर्णों का ही प्रयोग है, मनहरणी है, यहां तक कि सातो सुरों (स.रि, ग, म, प, ध, नि ) को भी सुख देने वाली है। उस वाणी के शब्द शब्द से हृदय का भाव टपकता है उस वाणी के गूढ़ व्यंगभाव को कौन जान सकता है, मैं तो प्रवीणराय के चेहरे की चेष्टाओं से उसकी वाणी की प्रभावोत्पादकता को पहचानता (नहीं तो मैं भी न समझ सकता) (पुनः) मूल कारे सटकारे केश, लोनी कछु होनी बैस, सोने तें सलोनी दुति देखियत तन की। आधे आधे लोचन, चितौनि औ चलनि आछी, सुखमुख कविता बिमोहै मति मन की । केशोदास मेहूं भाग पाइये जो बाग गहि, साँसभि उसासैं साध पूजै रति रन की। बेटी काहू गोप की विलोकी प्यारे नंद लाल ? नाही लोललोचनी ! बड़वा बड़े पन की ।। ८३ ॥ (नोट)-इसमें भी वही बात समझिये जो छंद नं० ८२ के नोट में लिख आये हैं । कृष्णजी एकांत में किसी गोपकुमारी