पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३०८

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निया-प्रकाश जीजै जिन्हें देख देखकर मैं जीवन धारण किये ई (जिन्हें मैं प्यार करती हूं अर्थात् सखीगण )। मामिला = बारे में, संबंध में। परतीति- विश्वास (नोट )-कोई सखी नायक से रति केलि कर पाई है। उसके अंग में रखिचिन्ह देखकर नायिका (अन्य संभोग दुःखिता ) उसी सखी से गूढ व्यंग द्वारा अपना क्रोध प्रगट करनी है। बैंगिया, नींद, लाज इत्यादि भी स्त्रीलिंग हैं, अतः नायिका कहती है कि:- भावार्थ-हे सखी : ऐसा जी चाहता है कि आज से अंगिया न पहनूं और नीद को भी पास न आने दूं और सखी के नाते से लज्जा को भी अपने साथ न रखू, ( ये बस्तुएं भी स्त्री ही हैं और मेरे साथ साथ पति के पास तक जा सकती हैं, मुझे मय है कि कहीं ये भी मेरे पति को अपना उपपति न बनाले) क्योंकि मैं देखती हूं कि थोड़े दिनों से वे भी, जिन्हें मैं अति प्यार करती हूं, मेरे पति के साथ खेल करने लगी हैं ( खेल शब्द रतिक्रीड़ा का द्योतक है) अतः मैने तो यह सिद्धान्त स्थिर किया है कि पतिश्रम के बारे में अपनी छाया का भी विश्वास न करना चाहिये । (व्याख्या )-गूढ़ व्यंग से अपना कोप प्रदर्शित करती है और उस सखी को कलंकित प्रमाणित करती है कि तेरी, अंगिया फटी है, तू रात भर सोई नही उनीदी जान पड़ती है, निर्लज है तेरे नखच्छत और अधरच्छत प्रत्यक्ष दीखते है, रतिरण सर्दिता होने से तेरी अंगप्रभा छायावत् सलीन है। शब्द तो सीधे सादे हैं, पर उकि बड़ी बक्र है। अतः बकोक्ति है।