रुचि = कांति ! राजहंसमुत= (१) राजहंश का पत्र अर्थात्
राजहंस । (२) 'हंसशुत राज' अर्थात् सूर्यवंशजात राजा
राजा इन्द्रजीत जी गहरवार वंशजात थे और गहरवार वंश
सूर्यवंश की एक शाखामान है । देवो दोहा ने०६, ७।
भावार्थ -यह प्रवीणराय है कि शारता है, क्योंकि शारदा
का अंग स्वेत कांति ले रंजिन है और इसका अंगभी श्रृंगार
की कांति से रंजित है । शारदा पीणा और पुस्तक लिये रहनी
है और यह भी बीगा और पुस्तक (अन्योकि केशव से कान्य
ग्रंथ पढ़ा करती थी ) लिये रहती है, शारदा के साथ राजहंस
रहता है और यह भी हलजात ( सूर्यवंशी) राजा के साथ
भूल-वृषभ वाहिनी अग उर, बासुकि लसत प्रवान ।
शिव सँग सोहै सर्वदा, शिवा कि रायप्रवीन ॥६..!!
शब्दार्थ-वृषभवाहिनी-बैल पर सवार (E) धर्म को बहन
करने वाली । बासुकि = (१) बासुकी नाग (२) सुगन्धिन
दुष्पमाला । प्रचीन(१) चतुरा (२) उत्तम वीणा । शिव
(१) महादेव (२) सुन्दरताप । शिक्षा -पार्वती।
भावार्थ-यह पानी हैं या प्रवीगाप, क्योंकि पाती
शिव का अंग होने से पमवाहिली, उ के दर में बाकी
नाग पडा रहता है और जो भी है तथा अर्थमा शिव के नंग
रहती हैं, इसी कार राशी पर धर्मको न
करती है अर्थात् वेश्या होने पर भी वेश्यावृत्ति छोड़ केवल
अक राजा ही से संबंध रखती है अतः तिमता है, उस पर
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प्रिया-प्रकाश