पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३१०

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३०४ प्रिया-प्रकाश उरज करजरेख ३-(ब्यधिकरणोकि) मूल-औरहि में कीजै प्रगट औरहि को गुण दोष । उक्ति यहै ब्यधिकरण की सुनत होत संतोष ॥८॥ भावार्था—और का गुण वा दोष और में प्रगट करना ब्यधि- करणोक्ति है। (यथा) मूल-जानु, कटि, नाभिकूल, कंठ, पीठि, मुजमूल, रेखी बहु भांति है, दलित कपोल, रद ललित अधर रुचि, रसना रसित रस, रोस में रिसाति है । लेरि लेटि लौटि पौटि लपटाति बीच बीच, हां हां, हूँ हूँ नेति नेति बाणी होत जाति है । आलिंगन अंग अंग पीड़ियत पद्मिनी के, सौतिन के अंग अंग पीडनि पिराति है ॥६॥ शब्दार्थ-करजरेख - मखरेखा । रसना रसित रस-जीभ से 'सीसी' के स्वाद का आस्वादन करती है। लौटि पौटि = उलट पलट कर । नेति नेति-ऐसा न करो, न मानोगे। पीडनि = मर्दन, पीड़ा। (नोट)- रति का वर्णन है, पाठक स्वयं समझ लें। (व्याख्या )-रति कष्ट पड़ता तो है नायिका पर पर उसके मर्दित होने की पीटा (द्वेष से ) सवति के अंग में पीड़ा पैदा करती है। नायिका का दोष सति में वर्णन किया गया।