पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३१३

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बारहवाँ प्रभाव ३०७ ४-(विशेषोक्ति) मूल-विद्यमान कारण सकल, कारज होय न सिद्ध । सोई उक्ति बिशेष मय, केशव परम प्रसिद्ध ॥१४॥ भावार्थ-पुष्ट कारण रहते हुए भी कार्य सिद्ध न हो। यह बिशेषोक्ति है। (यथा) मूल-कर्ण से दुष्ट ते पुष्ट हुने भट पाप औ कष्ट न शासन टारे। सोदर सैन कुर्योधन से सब साथ समर्थ भुजा उसकारे ।। हाथी हजारन को बल केशव ऐचे थको पट को डर डारे । द्रौपदि को दुहसासन पै तिल अंग तऊ उपन्यो न उघारे॥१५॥ शब्दार्थ-भुजा उसकार- बाहें चढ़ाये । कुयोधन = दुर्योधन । डर डारे भय छोड़कर। भावार्थ-कर्ण ऐसे दुष्ट से भी अधिक पुष्ट भट सहायतार्थ वहां मौजूद थे, पाप और कट भी जिसका शासन मानते थे, दुर्योधन ऐसे सामर्थवान भाइयों की सेना (समूह ) बाहे चढ़ायें साथ थी, हजारों हाथी का बल था, निर्भय होकर बस्त्र खींच रहा था, पर तो भी दुःशासन द्रौपदी का तिलमात्र भी अंगन उधार सका। (पुनः) मूल-सिखै हारी सखी डरपाय हारी कादंबिनी, दामिनि दिखाय हारी दिसि अधरात की। झुकि झुकि हारी रति मारि मारि हान्यौ मार, हारी झकझोरति त्रिविध गति बात की ।