पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३१५

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बारहवाँ प्रभाव ३०६ वेई हैं अर्जुन पान नहीं जग में यश की जिन बेलि बई जू। देखत ही तिन के तब कोलनि नेकहिं नारि छिनाइ लई जू॥१८॥ शब्दार्थ हई =मारी। जईजीत ली। कोल - भील। नेकहि = थोड़ी देर में। भावार्थ -सरल है। (नोट ) इसमें उस घटना का वर्णन है जब अर्जुन कृष्ण के परिवार की स्त्रियों को हस्तिनापूर लिये जाते थे, रास्ते में भीलों ने स्त्रियां छीन ली और अर्जुन कुछ न कर सके। (पुनः) मूल-तुला-तोल-कसवान बनि कायथ लिखत अपार । राख भरत पतिराम पै सोनो हरति सुनार ॥१९॥ (नोट)-इसमें 'धान' शब्द का अन्वय तुला और तोल के साथ भी समझो अर्थात् तुलावान, तोलवान और कसवान समझना चाहिये। शब्दार्थ-तुलावान = कोई कायस्थ तौलने का तराजू अपने पास रखता है। तोलवान = कोई कायथ तौल वाले बांट अपने पास रखता है, ताकि पतिराम सोनार बांट बदल न दे। कसवान-कोई कायथ कसौटी (कष - कसौटी) अपने पास रखता है कि जेवर बन जाने पर कप रेखा की परख करले। सुनार-( स्वनारि ) पतिराम की खी। (नोट)-कूड़ा साफ करने के बहाने दूकान की राख पतिराम की स्त्री उठा ले जाया करती थी। पतिराम सोनार चोराया