पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३१६

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३१० प्रिंया-प्रकाश दुश्मा सोना उसी में मिला दिया करता था। इस तरह वह सोना उसके घर पहुँच जाता था । भावार्थ-कोई तुलावान, कोई तौलवान और कोई कषवान बनकर अनेक कायस्थ पतिराम की निगरानी करते हैं, पर तो भी राख भरते समय पतिराम की स्त्री सोना चोराले जाती है। (सूचना)-पतिराम सोनार के संबंध में प्रभाव ९ मैं छंद २९ का नोट देखो। ५-(सहोक्ति) मूल-हानि वृद्धि शुभ अशुभ कछु कहिये गूढ़ प्रकास । होय सहोक्कि लु साथही बरणत केशवदास ॥२०॥ भावार्थ-जहां किसी वस्तु की कमी बढ़ी, शुभ वा अशुभ गुण वा गुप्त तथा प्रगट होना वर्णन करना हो, तो उसके । साथ एक और घटना का भी उल्लेख कर दिया जाय, उसको सहोक्ति कहते हैं। (यथा) मूल-शिशुता समेत भई मंदगति चरननि, गुणन सों बलित ललित गति पाई है। भौंहन की होड़ा होड़ी है गई कुटिल अति. तेरी बानी मेरी रानी सुनत सुहाई है ॥ केशोदास मुख हास हिसबै ही कटितट, छिन छिन सूछम छबीली छबि छाई है ।