पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३१७

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बारहवां प्रभाव बारबुद्धि बारन के साथ ही बढ़ी है बीर, कुचनि के साथही सकुच उर अाई है ॥२१॥ शब्दार्थ-बलितः = युक्त। होड़ा होडी स्पर्धा में। हिसखा- स्पर्धा, बराबरी की इच्छा। बार बुद्धि बालकपन की बुद्धि, भोलापन । बार- केश । सकुच-लजा। भावार्थ-लड़कपन सहित चरणों की चंचलता मंद पड़गई ( लड़कपन भी मंद पड़ा है और साथ ही साथ चरणों की चंचलता भी मंद पड़ी है ) और पैरों में गुण सहित सुन्दर बाल आगई है। बाणी सहित भौहें भी टेढी हो गई (भौहैं भी टेढ़ी हुई हैं और साथ ही वाणी में भी बॉकपन श्रागया है)। हास्य की स्पर्धा करते हुए कमर भी पतली हो गई है, बोल बढ़े हैं और साथ ही बुद्धि भी बढ़ी है। कुचों के साथ ही सकुच भी बढ़ी है। २२-२३-(ब्याजस्तुति निंदा) मूल-स्तुति निंदा मिस होत जहँ, स्तुति मिस निंदा जान । ब्याजस्तुति निंदा बहै, केशवदास बखान ॥२२॥ भावार्थ---निंदा द्योतक शब्दों से जहां स्तुति निकलैं वहाँ "निंद्याव्याज स्तुति" और स्तुति सूचक शब्दों से निश भासित है, वहां "स्तुतिव्याज निंदा" अथवा संक्षेप से 'ब्याजस्तुति' और ब्याजनिंदा कहते हैं। (नोट)-नीचे लिखा उदाहरण ऐसा सुन्दर है कि इसी एक छंद में दोनों उदाहरण मिल जाते हैं। यह केशव का कमाल है। कृष्ण की निंदा और नायिका की स्तुति ब्याज से निक- लती है।