पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३२१

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बारहवाँ प्रभाव (नोट)-युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में शिशुपाल के बचन कृष्ण के वास्ते । प्रगट तो निंदा है, पर श्लेष से स्तुति निक- लती है। शब्दार्थ-(निंदापक्ष) माया-छल । मिलेहिं माँझ = बीचही में। मातंग सुत अभिगामी - स्वपच भक्त के पास जाने वाला । अजादि = बकरे कोरा । वरद-बैल । भावार्थ--(भीष्म के कहने से कृष्ण को तिलक किया जाना निश्चय हुआ था, अतः शिशुपाल कहता है कि ) यह कृष्ण सा छली है कि इसका छल समझ में नहीं पाता, इसका छल लोगों को बीचही में मोह लेता है-द्विविधा में डाल देता है। यह एक हाथ से पुन्य भी करता है और एक हाथ से पाप भी । पर दारा प्रिय है ( कुचरित्र है ), मतवारे मातंग (चांडाल) के पास आया जाया करता है। निशि- बर का सा काला मुख है, देह भी काली है। अभी हाल के जमाने तक बकरियां चराता रहा, बैलों के साथ खेलना इसको भाता है (शिष्ट समाज में कभी रहा नहीं) इतने पर अति अनाथ है (एक विस्वाभर भी जमीन का नाथ अर्थात् राजा नही है ) बड़े बड़े राजाओं को छोड़ कर ऐसे कृष्ण को सर्वमान्यता का तिलक दिलवाने कहते हैं, मैं भीष्म को क्या कहूं वे तो न स्त्री हैं न पुरुष ही हैं (भीष्म को लोग नपुंसक भी कहा करते थे)। शब्दार्थ-( स्तुति पक्ष)-परदार प्रिया श्रेष्ट दारा के प्रिय, लक्ष्मी पति । मातंग सुत अभिगामी = गजेन्द्र के पास जाकर उसकी रक्षा करने वाले। निशिचर -चंद्रमा। देहकारी% सब जीवों के शरीर को रचने वाला । श्रज्ञादि ब्रह्मादि