पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३२४

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प्रिया-प्रकाश भावार्थ- मधुकरशाह से लड़ने के लिये शाह शहाबुद्दीन सदल बल ओड़छे पर चढ़ आया। मधुकरशाह से उसे प्राणों की शंका थी। पर वे तो रण में जाही न पाये थे कि दूलहराम ने उसे जातकर यश का तिलक अपने सिरपर लगाया। (नोट)-मधुकरशाह साधक था पर कीर्ति दूलहराम को मिली जो केवल साधन मात्र था। दूलहराम मधुकरशाह पुन और सेना के एक सेनापति थे। २५-(पर्यायोक्ति अलंकार) मूल-कौनहु एक अदृष्ट ते, अनहीं किये जु होय । सिद्धि आपने इष्ट की, पर्यायो कति सोय ॥२६॥ भावार्थ-अपने इष्ट की सिद्धि किसी अदृष्ट कारण से बिना कुछ यस कियेही हो, वहाँ पर्यायोक्ति अलंकार करेंगे। हाल के प्राचार्य इसे महर्षण काँगे। (यथा भूल-खेलत ही सतरंज अलिन में, आपहि ते, तहां हरि आये किधौं काडू के बोलाये री । लागे मिलि खेलन मिलैकै मन हरें हरें, देन लागे दाउँ आपु आपु मन भाये री ॥ उठि उठि गई मिस मिसही जितहिं तित, केशोदास की सा दोङ रहे छवि छाये री। भौंकि चौंकि तेहि छन राधाजू के मेरी आली, जलन से लोचन जलद से ह्वै आये री ॥३॥