पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३२५

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। बारहवाँ प्रभाव शब्दार्थ-ही-थी। हरे हरे-धीरे धीरे। देन लागेदाउँवाजी में हारी हुई बस्तु लेते देते हैं। जलद से जलपूर्ण, अश्रुपूंर्ण । भावार्थ-सरल है व्याख्या-बिना यन किये 'अपहिते आये अथवा किसी अन्य के बोलाने से आये, पर राधा ने कोई यत्त नहीं किया था। नेत्र जलद है आये अर्थात् रतिसूचक अश्रु नामक साधिक भाष हुश्रा । यही अभीष्ट था। २६-(युक्त अलंकार) मूल-जैसो जाको रूप बल, कहिये ताही रूप । ताको कवि कुल युक्त कहि, बरणन विविध सरूप॥३१॥ (यथा) मुल-मदन बदन लेत लाज को सदन देखि, यदपि जगल जीव मोहिबे को है छमी। कोटि कोटि चद्मानि बारि! वारि बारि डारी, जाके काज ब्रजराज आजलौं हैं संयमी ।। केशोदास सबिलास तेरे मुख की सुबास, सुनियत आरसही सारसाने लै रमी। मित्रदेव, छिति दुर्ग, दंड दल, कोष, कुल, बल जाके ताके कहौ कौन बात की कमी ॥३२॥ शब्दार्थ-बदन लेत-कुछ कहने लगता है, प्रशंसा करने लगता! लाज को सदनलजा भरा तैरा मुख | छमी- समतावान । शारिस हे बारी। संयमी व्रत किये हैं (कि