पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३२९

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तेरहवा प्रभाव (यथा) भूल-मूलन सो फलफूल सबै दल जैसी कछू रसरीति चली जू । भाजन भोजन भूषण भामिनिभौन भरी भव भांति भली जू ॥ हासन आसन बास सुवासन बाहन यान बिमान थली जू । केशव जैसे महाजन लोग मेरै सचि भोगत भोग बली जू ॥५॥ शब्दार्थ- मूलन सौ फल फूल-मूल से लेकर फल फूल दल तक । भामिनि भौम घर की घरनी, पत्नी । भरी भव: भाव भरी, पूर्ण अनुरक्त ( यहां गति शुद्ध रखने को 'भाव' को 'मव' लिखा गया है ) डासन-बिछौना । बास सुगंध बस्तु । बासन = वस्त्र । महाजन - धनी जन । सचि मरें- संचित करने में परिश्रम करते हैं। ( व्याख्या)-अनेक प्रकार की सामग्री एकत्र करते हैं धनी- जन, और कोई बली उन्हें लूटकर सहज में सब सामग्री मांगता है। (पुनः) मूल-शरघा संचि सँचि मरै शहर मधुपान करत मुख । खनि खनि मरत गवार कूप जल पथिक पियत सुख ।। बागवान बहि मरत फूल बांधत उदार नर । पचि पचि मरत सुआर भूप भोजननि करत पर । भूषण सोनार गढ़ि गढ़ि मरै भामिनि भूषित करत तन । कहि केशव लेखक लिखि मरहिं पंडित प. पुरान गन ॥६॥ शब्दार्थ -शरबा-मधुमक्खी । संचि सँचि मरै = बड़े परिश्रम