पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३३०

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३२४ प्रिया-प्रकाश से एकत्र करती है। शहर में शहर के लोग। मुख-मुख्य । शहर मुख-शहर के मुख्य लोग। सुधार = ( सूपकार ) रसोइया। भावार्थ- २९-(प्रसिद्धालंकार) मूल -साधन साथै एक भव भोगें सिद्धि अनेक । वासों कहत प्रसिद्ध सब केशव सहित विवेक ॥७॥ (यथा) भूल-मात के मोह पिता परितोषन केवल राम भरे रिस भारे । भौगुन एक ही अर्जुन को चितिमंडल के सब छत्रिय मारे ॥ देवपुरी कहँ औधपुरी जन केशवदास बड़े 'अरु बारे । सूकर स्वान समेत सबै हरिचंद के सत्य सदेह सिधारे ॥८ शब्दार्थ-मातके "भारे माता की गलती पर तथा पिता को संतुष्ट करने के लिये, परशुरामजी बड़े क्रुद्ध हुए । अर्जुन - सहस्रार्जुन । देवपुरी स्वर्ग। (नोट)-सहस्रार्जुन के दोष से अनेक क्षत्री मारे गये। हरिचंद के पुण्य से सब ने मुक्ति पाई । यही इस अलंकार की वर्णन शैली है। भावार्थ-सुगम ही है। ३०-(बिपरीतालंकार) मूल-कारज साधक को जहां, साधन बाधक होय । तासों सब विपरीत कहि, कहत सयाने लोय ॥६॥