पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३३१

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तेरहवां प्रभाव (यथा) मूल-नाह ते नाहर, तिय जेवरी ते सांप करि, घालें घर, बीथिका बसावती बननि की। शिवहिं शिवाहू भेद पारति जिनकी माया, माया हू न जानै छाया छलनि तिननि की । राघाजू सौ कहा कहौं ऐसिन की मानें सीख, सांपिनि सहित विष रहित फननि की। क्यों न परै बीच, बीच आंगियौ न सहि सकें, बीच परी अंगना अनेक आंगननि की ॥१०॥ शब्दार्थ-नाहर=सिंह । जेवरी रस्सी। वीथिका गलिया। शिवा=पार्वती। माया-छल । मायाह तिननिकी उनके छल की छाया को माया भी नहीं जान सकती। वीच श्रोगियों नसहि सके जोचोली का भी बीच में पड़ना न सह सकते थे, श्रति उत्कट प्रेमी। अंगना-स्त्री। अनेक आँगननि की अनेक आँगनों (घरों) की फिरने वाली अर्थात् दूती। भावार्थ-जो दूतियां पति को सिंह सम भयंकर, नथा रस्सी को सांप बनाकर अनेक घर नष्ट कर देनी है, और जंगल की गलियों को श्राबाद करती हैं, जिनकी कपर चाल शिव पार्वती में भी भेद करा सकती है, स्वयं नारायणी माया भी जिनके छल की छाया तक को नहीं समझ सकती, क्या कहूं राधि- का जी ऐसी ही दूतियों की सीख मान लेती हैं जो फन रहित विषधर सर्पिणी हैं, तो क्यों म बीच पड़े (पड़ना ही चाहिये), क्योंकि जो राधाकृष्ण गिया का भी मध्यस्थ होना न सह