पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३३३

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प्रिया-प्रकाश चला आता है, तो 'कुत्रगिरि' कहते हुए कोई विलक्षण कल्पना करना चाहिये जिससे 'कुछ' गिरिवत् प्रमाणित हो। और 'मुख' का उपनाम 'चन्द्र' सनातन से चला आता है। अतः 'मुखचन्द्र' कहते हुए मुख को चन्द्रमावत् प्रमाणित कर देना। यही अद्भुत रूपक है। (यथा) मूल-शोभा सरवर माहिं फूल्योई रहत सखि, राजै राजहंसिनि समीप सुख दानिये । केशोदास आसपास सौरम के लोभ धनी, माननि की देवि भौरि भ्रमत बखानिये। होति जोति दिन दूनी निशि में सहसगुनी, सूरज सुहृद चारु चंद्र मन मानिये । रति को सदन छू सकै न मदन ऐसो, कमल बदन जग जानकी को जानिये ॥१६॥ शब्दार्थ-प्रानन की देवी सुगंध की सच्ची अधिकारिणी देवी । सूरज सुहृद -सूर्य निज बंशबधू जानकर जिसके मुख से सुहृदपना रखता है। चंद्र-रामचन्द्रजी । रति-प्रीति । भावार्थ-श्री सीता का मुख कमल ऐसा है कि शोभा के सरोवर में सदा फूला ही रहता है, और जिसके निकट राज- हंसिनी रूपी सखियां शोभा बढ़ाती हैं, सुगंध के लोभ से उसके इर्द गिर्द सुगंध की लची अधिकारिणी देवियां भौंरी रूप से मैडराया करती हैं। उसकी कांति दिन में तो सूर्य की सुख- दता से दुगुनी होती है, पर रात में श्रीरामचंद्र की सुहदता