पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३३६

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तेरहवाँ प्रभाव सफेद पोशाक पहने पुतलियों को नी समझिये अनेक प्रकार के चलने वाले कटाक्षों को गति भेद समझो, नेह को नायक ( नाच सिखाने वाला ओस्ताद) जानो, मृदुहास हास्यरूपी मृदंग अलग ही बजता है, और हास्य की दीप्त ही चिरागों की रोशनी है। (व्याख्या )-गायक को देख क : जो दशा नायिका की झोती है उसका रूपक मनमाने ढंग से नाच से बांधा गया है । अतः रूपक रूपक है। ३२-(दीपक अलंकार) मृल-बाच्य क्रिया गुण द्रब्य को, बरनहु करि इक द्वार । दीपक दीपति कहत हैं, केशव कमि [सर भौर ॥ २१॥ शान्दार्थ--- इकटौरः = एक ढंग से, शब्दों की टोक मौजूनियत से। भावार्थ-जिस द्रव्य ( वस्तु) का वर्णन करना हो । उसका वर्णन उसकी क्रिया और उसके गुण सहित खूप उपयुक्त रूप से हो, उसमें दीपक अलंकार होगा। (नोट)-'दीपक' का अर्थ है 'प्रकाश' । अतः किसी वस्तु वर्णन को उसके उपयुक्त गुणों तथा क्रियाओं द्वारा खूब प्रकाशित करना ही 'दीपक' है। मूल-दीपक रूप अनेक हैं, मैं बरनौं द्वै रूप । मणि, माला, तिनसों कहैं केशब सब कवि भूप ॥२२॥ भाषार्थ-दीपक के अनेक प्रकार हैं। उनमें से मैं दो का वर्णन करता हूं--(१) मणि दीपक (२) माला दीपक। (नोट)-'मणिदीपक' किन वर्णनों में भला मालूम होता है, इसकी सूचना केशव जी पहले ही दिये देते हैं कि