पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तेरहवां प्रभाव ३३३ विलास - कटाक्ष हास्य इत्यादि हावभाव । भूषोभूषित किया हुआ । नवनवीन । सुभग सुभाय = कृष्ण के स्वावा- विक सौन्दर्य से । मेरो दीप=मेरे मन को प्रकाशित करने वाला (मुझे आनंद देने वाला अर्थात् कृष्ण )। तेरो मन दी- पित करतु है तेरे मन को दीप्त करता है-तुझे भी आनन्द देता है। (सूचना)- इस छंद में हरिननैनी, विलासिनी, भामिनी, और मानिनी नायिका के गुण बाचक संबोधन हैं। हरिननेनी के साथ थरि (सिंहयाची ) का प्रयोग बहुत सुन्दर है। हरि (सूर्यवाची भी है ) के साथ तमतेज, और क्रिया "हरतु है', बड़ा मज़ा दे रहे हैं । 'दीप' के कारण तम, प्रकाश तथा शोभा के शब्द फैसे सुन्दर मालूम होते हैं । 'दीप' की क्रिया 'दीपित करते है 'तम हरतु है' बहुत सुन्दर श्राये हैं। इसी प्रकार शब्दों का मौजूं प्रयोग केशव के मत से दीपक अलंकार है। उर्दू तथा फारसी साहित्य में इसकी बड़ी सुन्दर छटा देखने में भाती है। इस प्रकार के प्रयोग मर्मशता, विद्वत्ता तथा प्रतिमा के परिचायिक तो अवश्य ही हैं। भावार्थ-(किसी मानिनी को कृष्ण मनाने गये हैं। संग में कोई चतुर सखी भी है। जब कृष्ण मनाते मनाते हार गये तब सखी कहती है) हे हरिनयनी ! पहले जरा कृष्ण के सम्मुख हेर तो (जरा आंख से आंख तो मिला, फिर मैं देखू कि तेरा मान कैसे रहता है) कैसे हंस हंस कर ( अपनी दंत छटा से तन को हटाते हैं ) तेरे मान अंधकार को हरण कर रहे हैं (क्योकि अंतिम चरण में aur at 'दीपक' कहा है। बिलासिनी !