भये त्रिविक्रम मिश्र तब तिनके पंडितराय ।
गोपाचलगढ़ दुर्गपति तिनके पूजे पाय ॥६॥
भाव शर्म तिनके भये जिनकै बुद्धि अपार ।
भये शिरोमणि मिश्र तब घट दर्शन अवतार ॥१०॥
मानसिंह सों रोष करि जिन जीती दिसि चारि।
माम बीस तिनको दये राना पाँव पखारि ॥११॥
तिनके पुत्र प्रसिद्ध जग कीन्हे हरि हरिनाथ ।
तोमरपति तजि और सों भूलि न ओड्यौ हाथ ॥१२॥
पुत्र भये हरिनाथ के कृष्णदत्त शुभ वेष ।
सभा शाह संग्राम की जीती गढ़ी अशेष ॥ १३ ।।
तिनको वृत्ति पुराण की दीन्ही राजा रुद्र ।
तिनके काशीनाथ सुन सोभे बुद्धि समुद्र ॥ १४ ॥
जिनको मधुकरसाह नृप बहुत करयो सनमान ।
तिनके सुत बलभद्र शुम प्रगटे बुद्धि निधान ॥ १५ ॥
बालहिते मधुसाह नृप जिनपै सुनै पुररान ।
तिनके सोदर है भये केशवदास कल्यान ॥१६॥
भाषा बोलि न जानहीं जिनके कुलके दास ।
भाषा कार भो मंदमति तहि कुल केशवदास ॥ १७ ॥
इन्द्रजीत तासों को माँगन मध्य प्रयाग ।
माग्यो सब दिन एकरस कीजै कृपा समाग ॥ १८ ॥
मोही कयौ जु बीरबर मांगि जु मनमें होय ।
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दूसरा प्रभाव