पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३४०

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तेरहवाँ प्रभाव करत होलाता है, कपा देता है। लवली - हरफारचौरी ! तनु तनु = अतिसूक्षम । सकल - कला सहित अर्थात् चतुराई से। क्योंहू = किसी प्रकार | सुबास = सुध (सुंदर बला) बँदनंद = कृष्ण। सौं = शपथ । तेज चल । (सूचना)-इसमें पन' का वर्णन है। अतः लोलन करत, बिलास बश होत, सुवास हरत इत्यादि क्रियाएं दक्षिणा नायक होने के लिहाज से बहुत सुंदर है। शीतल, सुगंध और मंद गुण वाचक विशेषणों को सार्थक करने के लिये हिमालय तक जाने की युक्ति, केशर कुसुमकोश का भार लेना, और चंपक चमेली से उलझते हुए आना बड़ी सुयुक्ति की बातें 1 मान को 'तर' बनाना भी सशुद्धिक है, जिसके कारण छंद का अर्थ चमक उठा है। इसी से यह दीपक है और वास्तव में मणिधीयक है। ये दोनों छंद केशव के अमूल्य रत हैं । इनकी छटा परवर्ती सैकड़ों कवियों ने उधार ली है। भावार्थ-दक्षिण पवन (बसंत की बाशु ) रूपी दक्षिा नायक दक्षिण से हिमालय पर्वत तक लौंग और लवली लताओं के फलों को हिला देखा है (इससे शीतल होजाता है) केसर के कुसुमकोश के छोटे छोटे रलकों का भीचतुराई ले सब भार सहन करता है ( इलले सुगंधित हो जाता है ) कहीं कहीं किसी प्रकार हड और साहस से बंधा चमेली और मालती से उलझ कर बिलास करते हुए उनकी सुवास ( सुन्दर यन) हरण करता है (जिसके बोझ से मंद गति होजाता है)। इस प्रकार यह शीतल सुगंध और मंदगति वाला दक्षिण पवन, कृष्ण की शपथ करके कहती है कि, न जाने कहां से भानरूपी वृक्ष को तोड़ने की शक्ति पा जाता है अर्थात् शीत. २२