पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३४३

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दामिनि दमक देखि, दीप की दिपति देखि, देखि शुभ सेज, देखि सदन सुमन को । कुंकुम की बास, धनसार की सुवास, भये फूलनि की बाल मन फूलि के मिलन को। हसि हसि मिले दोऊ, अनही मिलाये, मान श्रुटि गयो एक बार राधिका, रवन को ॥२६॥ शक्षार्थोर । असाप = शान । दिपति = (दीक्षि) प्रकाश । सदन सुरन को फूलों का बंगला । फूलि = उप- मित होकर । राधिका-रवन को राधिका और उनके रमण अर्थात् का। भावार्थ - सुगम ही है। (विशेष)-इस देश (एकान्त, शलों का बैंग्ला) और काल (वर्षा ) का बर्णन है और कई कई चीजों का सुनना, देखना वर्णन है। अत: परिभाषा के अनुसार यह मालादीपक है, पर अर्वाचीन मत से इसे 'पदार्था' दीपक कहेगे। ३३--(प्रहलिका अलंकार) मूल-बरनिय बस्तु दुराय जहँ, कौनहुँ एक प्रकार । तासों कहत प्रहेलिका, कबि कुल वुद्धि उदार ॥ ३० ॥ (यथा) मूल-सोभित सत्ताईस सिर, उनसठि लोचन लेखि । छप्पन पद जानौ तहां, बीस बाहु बर देखि ॥ ३१ ।। भावार्थ-सूर्य मंडल में ब्रह्मा, विष्णु, शिव अपनी शक्तियों तथा अपने वाहनों सहित विराजे हैं, ऐसा पुराणों में वर्णन है। इसे