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प्रिय-प्रकाश

मांग्यो तब दरबार में मोहि न रोकै कोय॥१९॥
गुरु करि मान्यो इन्द्रजित तनमन कृपा बिचारि।
ग्राम दये इकबीस तब ताके पायँ पखारि॥२०॥
इन्द्रजीत के हेत पुनि राजा राम सुजान।
मान्यो मंत्री मित्र कै केशवदास प्रमान॥२१॥

शब्दार्थ––इन्द्रजीत के हेत=इन्द्रजीत के हितुवा राजा रामसाह जी।


दुसरा प्रभाव समाप्त