पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३५१

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प्रिया-प्रकाश (यथा) मूल-अमल, कमल कुल कलित, ललित गति, बेल सों बलित, मधु माधवी को पानिये । मृगमद मरदि, कपूर धूरि चूरि पंग, केसरि को केशव विलास पहिचानिये ।। झेलि के चमेली, करि चंपक सों केलि, सेइ सेवती, समेत हेतु केतकी सों जानिये। हिलि मिलि मालती सों आवति समीर जब, तब सेरे सुख मुख बास सों बखानिये ॥ शब्दार्थ-अमल = गर्द रहित । ललित गति मंद चालसे। बेल =बेला। मधु मकरंद । मृगमद = कस्तूरी। सुख = सहज, साधारण । भावार्थ-निर्मल होकर ( खूब नहा धोकर, अति स्वच्छ होकर, रज रहित होकर) कमलों की बास से युक्त होकर, मंद गति से चलता हुआ, बेले की बास से युक्त, माधवी का मकरंद पान किये हुए, कस्तूरी को मर्दन किये हुए, कपूर को पैरों से कुचलकर चूर करता हुश्रा,केशर से बिलास करके (मिलकर) चमेली को धक्का देते; चंपा से केलि करके, सेवती का सेवन करके, केतकी से प्रेम करता, और मालती से मिलता हुआ जब सुगंधित पवन श्रावै, तब कहीं तेरे सहज मुखपाल के समान कहा जाय। ( ब्याख्या )-तात्पर्य यह है कि सहज सुगंधित पवन, उसके सहज मुखबास से हीन है, जब वह ऐसा बनकर आये तब कहीं उपमा ठीक हो।