पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३५४

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चौदहवाँ प्रभाव बातें संभव हैं और इसकी बातें त्रिकाल में असंभव हैं। किसी दशा में संभव हो सकता है, कि पवन में उतली बस्तुएँ मिल सके, पः कमल में गाने, हेरने, और बोलने की शक्ति आई नहीं सकती। ५--(विकियोपमा) -क्यौहूं क्योंहूं वरनिये, कहै न एक प्रकार । विक्रिय उपमा होति तह, केशव बुद्धि उदार ॥ १३ ॥ भावार्थ-उपमेय एक हो, पर उपमान में कभी कुछ कभी (यथा) मूल केशोदास कुंदन के कोश तें प्रकाशभान, चिंतामणि श्रोपनी सो ओषिकै उतारी सी। इंदु के उदोत ते उकीरी ही सी काढ़ी, सब सारस सरस, शोभासार तें निकारी सी। सोधे की सी सोधी, देह सुधासों सुधारी, पा धारी देव लोक तें कि सिंधु ते उवारी सी। आजु यासों हँसि खेलि बोलि चालि लेहु लाल काल्हि एक बाल ल्याऊं काम की कुमारी सी ॥१४॥ पदार्थ-कोश =ढेर । अोपनी = मांजने की वस्तु जिससे रगड़ कर सलवार या कटारी में जिला दी जाती है। श्रोपिक- जिला देकर । उदोत- चांदनी । उकारी खोदकर निकासी