पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रिया-प्रकाश गई। सारस- कमाल । साधासुगंध । उचारी निकाली भावार्थ-(कोई दूती कृष्ण से कहती है कि ) आज इससे बिहार कर लो, कलह दूसरी ला दूंगी। (यह कैसी सुन्दर है कि) कुंदन के ढेर से भी अधिक प्रकाशमान है, चिंतामणि की श्रीधनी से जिला दी गई सी है, मानो चांदनी के खेत से खोदकर निकाली गई है, सब कमलों से बढ़कर है, शोभा के सार से निकाल ली गई है, सुगंध से शुद्ध करके इसको देह सुधा से बनाई गई है, न जाने यह देवलोक से आई है या से निकाली गई है। (व्याख्या )--कई प्रकार से उसके सौन्दर्य को पुष्ट करती है अतः विक्रिय है। ६-(दूषणोपमा) मूल-जहँ दूषण गण वरनिये, भूषण भाव दुराय । दूषण उपमा होति तहँ, बुधजन कहत बनाय ॥ १५ ॥ भावार्थ-जहां उपमानों के दोष बलमा कर उपमेय की प्रशंसा की जाय । उपमानों को खूबियां छिपाई जायें । । मूल--जो कहाँ केशव सोम सरोज सुधामुर भुंगन देह दहे हैं दाडिम के फल शेफालि विद्रुम हाटक कोटिक कष्ट सहे है ॥ कोक, कपोत, करी, अहि,केहरि, कोकिल, कीर कुचील कहे है। अंग अनूपम वा प्रिय के उनकी उपमा कह बेई रहे हैं ॥१६॥ शब्दार्थ-सोम = चंद्र। सुधार == राष्टु । शेलि (सं० शेफाली)निवारी की कलिशदाताका उपमान) विभ-मुंगा।