पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३५७

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प्रिया-प्रकाश (यथा) मूल--सुवरण युत, सुरबरन कलित, पुनि भैरव सो मिलि, गति ललित, बिशानी है। पावन, प्रगट दुति द्विजन्य की देखियत, दीपति दिपति अति, श्रुति सुखदानी है ।। सोभा शुभ सानी, परमारथ निधानी, दीह कलुष कृपानी मानी, सब जग जानी है। पूरब के पूरे पुन्य, सुनिये प्रवीन राय, तेरी बानी गेरी रानी गंगा को सो पानी है।॥१८॥ (नोट)-यहाँ श्लेश से काम लेकर वाणी को गंगाजल की समता दी गई है। शंगाजल के केवल गुण ही ग्रहण किये हैं, दूषण छोड़ दिये गये हैं। जितने विशेषण हैं वे सब दुर्थक हैं, एक गंगाजल के लिये दूसरा वाणी के लिये। ध्यान से समझियेगा तो शब्दार्थ से ही भावार्था भी समझ में श्रा जायगा। शब्दा-सुवरणयुत-१-सुन्दर रंग का (निर्मल, सफेद ), २---सुन्दर मधुर अक्षर युक्त। सुर वरन कलित-१-श्रीष्ट देवताओं सक, २--सुन्दर सातों सुरों से युक्त । भैरव-१- महादेव, २-और राग गतिललित-१-सुन्दगति अर्थात मुक्ति प्रदायिनी, २-सुन्दर प्रबाइ युक्त-धारा प्रवाह बन्। बितानी= १-खूब विस्त, २-विशेष तानों से युक्त । हिज १-मायणा, २-दांत । श्रुति =१-जेद, २-कान । परमारथ जिधानी -१-मुक्ति का खजाना, २-सुन्दर गंभीर अर्थ का