पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३५९

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प्रिया-प्रकाश -~-(मोहोपमा) मूल रूपक के अनुरूपकहिं. जानि कतहुँ मन जाय । ताही सों मोहोपमा कहत सकल कविराय ॥१६॥ Mar. उपमान को देखकर उसेही उपमेय समझना मोहो: पमा है हाल के प्राचार्य इसे प्रात्यालंकार मानते हैं। (स्था) खेलत न खेल कयू हांसी न हँसत हरि, सुनत न गान कान तान बान सी बहै। श्रोत न अंबरन डोलत दिगंबर सो, शंबर ज्यों शंबरारि दु.ख देह को दहै ॥ भूलिहू न सूधै फूल, फूल तूल कुम्हिलात गात, खात बीरा हू न बात काहू सों कहै । बानि जानि चंद मुख केशव चकोर सम, चंदमुखी ! चंद ही के बिंब त्यों चितै बहै ॥२०॥ धान सी बहै = बाण के समान लगती है। शंवराति दुश्व - कासपीड़ा । तूल == समान। सास-शरीर । बीरा बान । बिज- मंडल ।योंतरक, और । भाषाश्च सखा बचन नायिका प्रति) हे चंद्रमुखी ! कृष्ण जी तो कोई खेल खेलते हैं ( चौधर शतरंजादि ) न हँसते हैं, न गान सुनते हैं क्योंकि वान तो उनके कान म बाण सी लगती है। कपड़े भी नहीं ओहते, दिगंबर से घूमा करते है,कास पीड़ा उनके शरीर को वैसेही दुःख देती है जैसे स्वयं कामने शंबर को