पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३७०

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1 प्रिया-प्रकाश जैसे कौनो कालवश कोमल कमल माहि, केशरै ई केशोदास कंटक से जानिये । जैसे विधु सघर मधुर मधुमय माहि, मोहै माहरुख विष विषम बखानिये । सुन्दरि, सुलोचनि, सुबधनि, सुदति तैसे, तेरे मुख आखर परुषरुख मानिये ॥४०॥ शब्दार्थ-मलयज चंदन । केशरैई: कमल केसर को ही, (किंजल्क कोही) । सधर धड़ सहित (पूर्ण, अखंडित)। मधु- अमृत । मोहै - मोह से। मोहरुख इच्छित होनेवाली (विहिनी) । सुदति = सुंदर दांतों वाली। आखर= अक्षर, परुषाख = कटोर से (कुछ कुछ कठोर ) सुंधार, सुलोचनि, लुबचनि, सुदति- ये शब्द संबोधन में हैं। भावार्थले सुन्दरी, सलोचनी, सुवचनी और सुदंती! तेरे बचन बैसे ही कठोर हैं, जैसे सुगंधति और शीतल चंदन में बुद्धिबल से स्वच्छ अति पहचानी जानी है, या जैसे कालवश (विरह अवस्था में) कोमल कमल केशर (किंजल्क) ही कांटे से जानते हैं, या जैसे पूर्ण और मीठे अन्यमय चन्द्रमा में गलती से सञ्छित होता हुआविरही विषम विष का होना बखानता है-अर्थात जैसे चन्दन में शनि का होना, किंजल्क का कांटा हाना, और चन्द्रमा में विप होना असंभव है, वैसे ही तेरे बचनों में कठोरता असंभव है। (नोट)-मेरी सम्मति से यहां एक प्रकार का सिध्याय- वलित' अलंकार सा जान पता है।