पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३७२

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प्रिया-प्रकाश २०-(मालोपमा) मूल--जो जो उपमा दीजिये, सो सो पुनि उपमेय । सो कहिये मालोपमा केशव कविकुल गेय ।। ४३ ॥ भावार्थ-पहले कोई बात कही जाय जिसमें उपमेय और उपमान हों। फिर वही उपमान उपमेय बनाया जाय और नया उपमान कहा जाय । क्रमशः ऐसा ही कई बार कहा जाय और अंतिम उपमान उस वस्तु को कहै जिसका वर्णन करना अभीष्ट है। (यथा) मूल-मदन मोहन ! कहौ रूप को रूपक कैसो ? मदन बदन ऐसो जाहि जग मोहिये । मदन बदन कैसो शोभा को सदन श्याम ? जैसो है कमल साचे लोचननि जोहिये ! कैसा है कमल ? शुभ ! आनंद को कंद जैसो, कैसा है सुकंद ? चंद उपमान टोहिये । कैसो है जु चंद वह ? कहिये कुचर कान्ह, सुनौ प्राण प्यारी जैसो तेरो मुख सोहिये ॥४४॥ शब्दार्थ- मदनमोहन हे कृष्ण (संबोधन में)। रूप सौन्दर्य रूपक = उपमान । श्याम (संबोधन में ) हे श्याम । रुचि- छवि । जोहिये-देखिये । शुभ-कृष्ण ( संबोधन में)। कंद = वादल । टोहिय - खोजिय। (नोट)-इसमें राधिका प्रश्न करती हैं, कृष्ण उत्तर देते हैं ।