पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३७३

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चौदहवां प्रभाव ३६६ भावार्थ-राधिका-हे मदनमोहन कृष्ण ! सौन्दर्य का उपमान क्या है ? कृष्ण-काम का मुख जिस पर संसार मोहित होता है। राo-हे श्याम ! काम का मुख कैसा शोभावान है ? -जैसा कमल है। उसकी छवि अांख से देख लो। रा-हे शुभ ! कमल कैसा (सुन्दर ) है ? कृष्ण-जैसे आनंद बरसाने वाला बादल । रा-वह बादल कैसा सुंदर है ? कृष्ण-उसका उपमान तो ढूंढने से चन्द्रमा ही मिलता है। रा०-हे कुंधर कान्ह ! वह चन्द्र कैसा सुन्दर है ? कृष्ण--हे प्राण प्यारी ! जैसा सुन्दर तेरा मुख है। २१-(परस्परोपमा) मृल-जहां अभेद बखानिये, उपमेय रु उपमान । तासों परस्परोपमा, केशवदास बखान ॥ ४५ ॥ (यथा ) मूल-वारे न बड़े न बृद्ध, नाहिनै गृहस्थ सिद्ध, बावरे न बुद्धिवंत, नारी औ न नर से । अंगी न अनंगी तन, ऊजरे न मैले मन, स्यार ऊ न शूरे रन, थावर न चर से । दृचरे न मोटे, राजा रंकऊ न कहे जायँ, मर न अमर, अरु आपने न पर से वेद इन कछु भेद पाक्त है केशोदास, हरि जू से हेरे हर, हरि हेरे हर से ॥४६॥ -- ।