पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३८३

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पंद्रहवाँ प्रभाव यद्यपि इन शब्दों में शब्दों का अंतर नहीं है, पर अन्यान्य चरणों में होने से सब्ययेत है। शब्दार्थ-अवनीप: - राजा । नीष = कदंबवृक्ष । भावार्थ --राजा राम का नाम लेने से जैसे पाप भगते हैं, (अर्थात बड़ी शीघ्रता और त्वरा से) त्यौंही कदंब फूलने पर विरही अपने प्रिय के समीप को भगता है। (आदि अस्त सव्यथेत) भूल-सीय स्वयंबर मांझ जिन, युवतिन देखे राम । ता दिन ते तिन सबन सखि, तजे स्वयं बर धाम ॥२०॥ भावार्थ-सीता के स्वयंबर में जिन युवतियों ने राम को देखा, हे सखी ! उसी दिन से उन सबों ने स्वयं अपने पतियों और घरों को त्याग दिया ( और बन में जाकर तप करने लगी, ताकि उन्हें भी राम सा नर मिले)। इसमें शादिमें और अंत में स्वयंवर' शब्द है । { दूसरे चौथे चरण में) मूल-जैसे छुवै न चंद्रमा, कमलाकर सबिलास । तैसे ही सब साधु पर, कमला कर न उदास ॥२१॥ शब्दार्थ कमलाकर- ( कमल + आकर) कमल समूह । सविलास-प्रफुल्लित । कमला लक्ष्मी (धन)। कर हाथ! उदास उदासीन (यह शब्द 'साधु' का विशेषण है)। भावार्थ-जैसे चन्द्रमा फूले कमलों को नहीं छूता, तैसे ही विरक्त साधुजन पराई लक्ष्मी को हाथ से नहीं छूते । (पहले, तीसरे, चौथे चरण में) भूल-अंग देस में देखिये, लक्ष्मी लच्छि सरूप । झंग नमे जैसे लसत, अंगनानि के रूप ॥ २२ ॥