पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३८४

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प्रिया-प्रकाश शब्दार्थ-लक्ष्मी - धन । लच्छिसरूप = अति सुंदर। नमें नम्र (कच कुचादि भार से नमित )। 'अंग' शब्द से यमक। भावार्थ-कचकुचादि के भार से नमित थंगवाली स्त्रियों के रूप जैसे अच्छे लगते हैं ( अति सुन्दर जान पड़ते हैं) वैसेही अंग देश का धन अति सुन्दर है। (अर्थात् अंग देश बहुत धन है) (पहले दूसरे तीसरे चरण में) मूल-दान देत यो शोभियत, दानरतन के हाथ । दान सहित ज्यों राजहीं, मत्त गजनि के माथ ॥ २३ ॥ शब्दार्थ दानरत-दानी । दान -गजमद । 'दान' शब्द से यमक। भावार्थ-दानी पुरुषों के हाथ दान देते समय ऐसे शोभित होने हैं, जैसे मस्त हाथियों के मस्तक गजमद सहित शोमा (पूर्वोत्तर सव्ययेत) मूल-परम तरुणि यों शेोभियत, परम ईश अरधंग । कल्प लता जैसे लसे, कल्पवृक्ष के संग ॥ २४ ॥ शब्दार्थ --परम = सुन्दर । परम = सर्व श्रेष्ठ । कल्प-सफेद । भावार्थ-सर्वश्रेष्ठ शिव के अर्दोग में सुन्दर तरुणी (पार्वती) ऐसी शोभती हैं जैसे कोई सफेद लता कल्प वृक्ष सं लिपटी हो। नोट-पूर्वार्द्ध में परम, परम का यमक और उत्तराद्ध में कल्प कल्प का यमक है।