पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३८६

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प्रिया-प्रकाश शब्दार्थ-मान-गर्व । मान-सरोघर-गर्घ के ताल । (अनि गर्वीला)। मानस-मन, चित्त । मा= लक्ष्मी-नसनश्य, नाशमान । चाहि =देख, विचार। मानस-हरि-हरि रूपी मान सरोवर । मानस मनुष्य । भावार्थ-हे अहंकार के ताल (गीले धनी मनुष्य ) अपने मन से लक्ष्मी को नाशमान विचार ले (जिस लक्ष्मी के बख पर तू घमंड कर रहा है यह नाशमान है)। हरि रूपी मान- सरोवर में रहने वाली मछली को (वे वैष्णव साधु जो सदा ही हरि भक्ति के पानी में डूबे रहते हैं ) तू मनुष्य ही नही कहता ( मनुप्य ही नहीं समझता ) यह बात अच्छी नहीं। (पुनः) मूल-बरनी बरनी जाति क्यों, सुनि धरनी के ईश। रामदेव नरदेव मणि, देव देव जगदीश ॥ २८ ॥ शब्दार्थ-बरनी (बरणी) वह दान जो बरण किये हुए ब्राह्मण को देते हैं। रामदेव = श्रीराम जी ( इसमे 'देव' शब्द श्रादर सूचक है ) नरदेव-राजा ( इसमें 'देव' शब्द का अर्थ है श्रेष्ठ वा पूज्य ) देवदेव-देवताओं में सर्वाधिक प्रकाशमान (इसमें प्रथम 'देव' का अर्थ है स्वर्गनिवासी अमर व्यकि और दूसरे 'देव' का अर्थ है प्रकाशमान ) (नोट)-इसमें दो बार 'बरनी' शब्द और चार वार 'देव' शब्द आया है। अर्थ अलग २ हैं श्रतः यमक है। अर्थ समझने में कुछ कठिनाई है , अतः दुखकर थमक है। भावार्थ-(किसी व्यक्ति का कथन किसी राजा प्रति) हे राजन् ! (धरणी के ईश) राम जी ने निज यज्ञ में जो ब्राह्मणों को दान दिया था उसका वर्णन मुझसे कैसे हो सकता है,