पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३९१

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पंद्रहवाँ प्रभाव देखने में संलग्न है, उसके सामने धन वैभव की अधिकता क्या चीज है (कुछ नहीं, अति तुच्छ है ) । उसकी मति के लिये चंचल बेश्याओं की शोभा खटाई सी है (अच्छी नहीं) उसकी शांत रसमयी मति केवल तुलसी पति ( विष्णु) पर ही मोहित होती है। नोट-इसके बाद किसी किसी प्रति में तीन छंद और हैं, पर हमने उनको क्षेपक समझ कर छोड़ दिया है। कारण कि उनमें यमक न होकर केवल विविध अनुप्रास मात्र है, और अनुप्रासों की गणना केशव ने अलंकारों में नहीं गनाई ( देखो प्रभाव छंद नं.१से७तक) मूल-यहि विधि औरहुँ जानियो, दुखकर यमक अनेक । बरणों चित्र कवित्त अब, सुनिये सहित विवेक ॥ ३५ ॥ पंद्रहवां प्रभाव समाप्त।