पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३९५

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सोरहवाँ प्रभाव २-(अमानिक वर्णन) मूल- एकै स्वर जहँ बरनिये अद्भुत रूप 'अ' वर्ण । कहिये मात्रा रहित सो मित्र चित्र आमर्ण ॥ ७॥ भावार्थ-सोलह स्वरों में से केवल एक स्वर 'अ' युक्त ही रचना के लब वर्ण आव उसे अमात्रिक वा मात्रा हीन कहते हैं। (TUIT ) मूल-जग जगमगत भगत जन रस बस, भव भयहर कर, करत अचर चर । कनक बसन तन, असन अनल बड़, बटदल बसन, सजलथल थल कर । अजर अमर अज वरद चरनधर, परम धरम गन बरन शरन पर । अमल कमल वर बदन, सदन जस, हरन मदन मद, मदन-कदन-हर ।। ८॥ नोट-इस छन्द में नारायण का वर्णन है। समस्त शब्द उनके विशेषण है। शब्दार्थ-जग "बस जो भक्त जनों की भक्ति के बश होकर जग में जग मगाता है अर्थात् जो भक्तों के हेत संसार में सगुण रूप धारण करता है। भव भय हर कर = जिसका हाथ संसारी भय दूर करता है। करत अचर चरझो जड़ों को चैतन्य करता है। कनक बसन तन = जो तन पर पीताम्बर धारण करता है।