पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३९७

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पर सोरहवां प्रभाव दल बसन' विशेषण शिव पर सरलता से नहीं लगते, श्रतः हमें यही अर्थ ठीक जंचता है। कोई कोई विद्वान् इसका अर्थ शिव भी घटित करते हैं, पर उसमें क्लिष्ट कल्पनाएँ करनी पड़ती हैं अतः हमें पसन्द नहीं। जो स्पष्ट अर्थ हमें भाया है वही हमने पाठकों के सामने उपस्थित किया है। ३-(नियमाक्षर शब्द रचना) मूल-एक श्रादि दै वरण बहु बरणे शब्द बनाय । अपने अपने बुद्धिबल सममैं सब कविराय ॥४॥ भावार्थ--एकाक्षर द्वयाक्षर, श्याक्षर इत्यादि शब्दों से ही सारा छंद रचा जा सकता ( किसी किसी को ऐसी ही रचना भाती है) यथा ४.-(एकाक्षर शब्द रचना) मूल-गो, गो, गं, गो, गी, अ, आ, श्री, भी, ही,भी, भा, न । भू, ख, वि, स्व, ज्ञा, द्यौ, हि, हा, नौ, ना, सं, भ, मा, न॥१०॥ शब्दार्थ-यो- सूर्य । गो-चंद्र। गंगणेश। गो= गाय। गी=सरस्वती। अविष्णु । श्रा=ब्रह्मा । श्री लक्ष्मी । श्री (5) धारण कर। ही= लज्जा। भी भय । सा- शोभा । न= नहीं है। भू-पृश्वी । ख-आकाश । वि= (द्वि) दोनो । स्व-अपना । झा - जानो। छौ प्रकाशित। हि- (हिय ) हृदय ।हा- दुःख । नौ नवीन ! ना= - नहीं होगा कल्याण । = चमकना । मा= मृत्यु। न नहीं होगी।