पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३९८

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प्रिया-प्रकाश भावार्थ-पूर्य, चंद्र, गणेश, गाय, सरस्वती, विष्णु, ब्रह्मा, लक्ष्मी प्रादि देव देवियों को धारण कर ( इनकी भक्ति कर ) -ऐसा करने में लजा वा भय शोभा नहीं देती। ( यदि तु ऐसा करेगा तो) पृथ्वी और अाकाश दोनों ही अपने जान, ( सर्वत्र तेरा गमन हो सकता है ) नेरा हृदय प्रकाशित होगा, (तब) तुझे नवीन दुःख न होगा, सुख का सितारा चमकेगा और मृत्यु भी न होगी (तू अमर हो जायगा )। (नोट)- इस दोहे में ऐसे शब्द हैं जिनके अनेक अर्थ हैं। जो हम लगा सके वह अर्थ कर दिया, पर हम यह नहीं कहा सकने, कि यही अर्थ ठीक है। विद्वान लोग इसके और भी अनेक अर्थ कर सकते हैं। ५-(व्याक्षर शब्द रचना) मूल-रमा उमा बाणी सदा हरि हर विधि सँग बाम । क्षमा दया सीता सती कीनी रामा राम ॥ ११ ।। शब्दार्थ-क्षमा दया सीता सती = क्षमा और दया गुण युक्त सती साध्वी सीता । रामापली । तात्पर्य यह है कि रमा की चंचलता, उमा का अर्धापन, और वाणी का मुखरा होना ये दोष सीला में नहीं, वरन् क्षमा दया और सतीत्व गुण युक्त हैं । भावार्थ-सुगम है। प्रत्येक शब्द दो अक्षर का है। ६-(अयाक्षर रचना) मूल- श्रीधर, भूधर, केशिहा, केशव जगत प्रमाण । माधव, राघव, कंसहा, पूरण पुरुष पुराण ॥ १२ ॥