पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३९९

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सोरहा प्रभाव शब्दार्थ-श्री शोभा । केशिहा- केशी को मारने वाले। कंसहा = कंस को मारने वाले। भावार्थ-सुगम है। इसमें प्रत्येक शब्द तीन अक्षर का है। ७-(चतुराक्षर रचना) मूल- -सीतानाच सेतुनाथ सत्यनाथ रघुनाथ, जगनाथ, ब्रजनाथ, दीनानाथ, देवगति । देव देव, यज्ञदेव, विश्वदेव, व्यासदेव, बासुदेव वसुदेव दिव्यदेव दीनरति । रणबीर रघुवीर यदुवीर ब्रजबीर, वलबीर बीरवीर रामचन्द्र चारुमति । राजपति रमापति रामापति रामापति, रसपति, रसापति, रासपति, रागपत्ति ॥ १३ ॥ मोट-प्रत्येक शब्द चार अक्षर का। सभी शब्द ऐसे हैं जिनका अर्थ सुगम है, कृष्ण और राम के अर्थ में व्यवहत हैं। नोट-अब धागे केशव जी ऐसे छंद कहते हैं जिसमें वर्णों की गणना नियमित है। अर्थात् वर्णमाला के उतने ही अक्षरों से छंद बनता है जितने का ये नियम कर देते हैं। (चूंकि उदा- हरण 'दोहा छंदों में हैं, और दोहा छंद से अधिक से अधिक ४६ वर्ण और कम से कम २६ वर्ष पा सकते हैं, अतः) केशव जी २६ से प्रारम्भ करके नीचे की गणना की ओर चले हैं। कोई कवि चाहे वर्णमाला के ३३ वर्ष तक का भी नियम कर सकता है। इन उदाहरणों में एक वर्ण कई बार श्रावै तो भी उसकी गणना एकही बार समझना चाहिये।