पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/४०८

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सोरहवाँ प्रभाव ४०५ भावार्थ-यह कार्य कामदेव का नहीं है, यह सब कार्य श्रीकृष्ण ही का है कि क्या सुन्दर और क्या असुन्दर सबके मनों को वश कर लिया है। (मोट)-इसमें क, न, ब, म, स, ह, केवल छः अक्षरों का प्रयोग है। (पांच वर्ण वाला) मूल-कमल नयन के नैन सों नैननि कौनो काम ? कौन कौन सों नेम कै मिले न साम सकाम ॥ ३६॥ शब्दार्थ-कमलनेनः श्रीकृष्ण । नैननि कौनो काम =मेरे नेत्रों को क्या कोई काम है ? अर्थात् कुछ काम नहीं है (कुछ संबंध नहीं है)। नेम = प्रतिज्ञा । साम= संध्या । सकाम = कामी । भावार्थ--(किसी दूती ने नायिका से प्राकर कहा कि कृष्ण ने प्रतिज्ञा की है कि संध्या को श्राकर दर्शन देंगे। इस पर नायिका का कथन है कि ) श्रीकृष्ण के नेत्रों से मेरे नेत्रों को स्था कोई काम है ? ( कुछ संबंध नहीं) वे किस किससे प्रतिज्ञा करके संध्या को नहीं मिले, वे बड़े कामी हैं अर्थात् प्रतिज्ञा तो कर देते हैं पर मिलते नहीं, काम बश होकर कहीं अन्यत्र ही उलझ रहते हैं। (नोट)-इसमें क, न, म, ल, और स केवल पांच ही वर्णों काम लिया गया है। (चारवर्ण वाला) मूल-बनमाली बन में मिले बनी नलिन बनमाल । नैन मिली मन मन मिली बैननि मिली न बाल ॥ ३७ ।। शब्दार्थ-बनमाली = श्रीकृष्ण ! नलिन कमल । बनी =फयती