पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/४११

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प्रिया-प्रकाश भावार्थ-डे (ना) नायक ! (यदि तुझमें पुरुषत्व है तो समझ ले कि) श्नच्छी लोच; अच्छी नीति (रोति) और अच्छे नेत्र चाली नायिकाओं में जो अनेक नाहीं नाहीं करने की आदत होती है, क्या वह नाहीं केवल सुख मात्र की नहीं है ? (अर्थात् केवल मुख से 'नाहीं करती हैं चिन्त से चाहती हैं। वह नाही भोजन में नमक से कम नहीं हैं, अर्थात् जैसे अलोना भोजन रुचिकर नहीं होता, वैसे ही यदि सारा सुन्दरी स्त्री में 'नाही नाहीं की बानि न हो तो उसकी सुरति किसी काम की नहीं। (नोट)- इस दाहे भर में केवल एक अक्षर 'न' का प्रयोग है। (सूचना) इस दोहे के लोग अनेक अर्थ करते हैं। हमें यही अच्छा जंचा है। (श्राधा छंद एकाक्षरी) मूल-केकी केका कीक का कोक कीक का कोक । लोलि लालि लाले लली लाला लीला लोल । ४१ ॥ शब्दार्थ-केकी-मोर । केका कीक = केका का शब्द, मोर के बोलने का कोलाहल । का क्या है ? अर्थात् कुछ नहीं है। कोक कीक - चक्रवाक का शब्द । कोक- दादुर, मेंढक । लोलिचाह में भरकर, प्रेम से प्रभावित होकर। लालि= पुत्र पर प्रेम जता कर । लोले-डोलती फिरती है। लली= नायिका। लालापुत्र! लीला खेल । लोल = चंचलता पूर्ण । (विशेष ;-किसी नायिका का पति विदेश में है, परन्तु छोटे पुत्र की लीलायें देख देख कर यह प्रसन्न रहती है, उसे नायक का बिरह नहीं सताता । यही वर्णन इस दोहे में है।