पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/४१४

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सोरहवा प्रभाव ४११ शामिल हैं, पर वामन शब्द छंद में है नहीं। सोच कर बाहर से लाने पड़े हैं, अतः यह बहिापिका अलंकार है। (अन्तापिका का उदाहरण) मूल-कौन जालि सीता सती, दयो कौन को तात । कौन अंथ बरन्यो हरी, रामायण अवदात ॥ ४५ ॥ ( ब्याख्या )इसमें तीन प्रश्न तीन चरणों में हैं, चौथे चरण में उत्तर के अक्षर हैं । प्रश्न ये है-(१) सीता सती कौन जाति की स्त्री हैं (२) उसके पिता ने किसको दिया था, (३) उसका हरी जाना किस अंध में वर्णित है। पहले प्रश्न का जवाब है 'रामा', दूसरे का जवाब है 'रामाय', और तीसरे का जवाब है 'रामायण' । अवदात उज्वल, शुद्ध । चूंकि 'रामा- यण' शब्द छन्द में ही श्रागया है, अतः अंतलापिका अलंकार कहलाया। ( गूढोत्तर वर्णन) मूल-उत्तर जाको अति दुरचो दीजै केशवदास । गूढ़ोत्तर तासों कहत बरणहु बुद्धि बिलास ॥ ४६ ॥ (यथा) मूल-नखते सिख लौ सुख देके सिंगारे सिंगार न केशव एक बच्यो। पहिराये ननोहर हार हिये सब गात सुगंध समूह सच्यो । दरसाई सिरी कर दर्पन लै कपि कुंजर ज्यों बहु नाच नच्यो । साल पान खवावत ही केहि कारन कोपि पिया पर नारि रच्यो४ि७ शब्दार्थ-सुख दै कै- राजी करके। सुगंध समूह सच्यौ सब प्रकार की सुगंध लगाई। सिरी= (श्री) शोभा । कषि-