पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/४१५

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निया-प्रकाश कुंजर ज्यों बहु नाच नच्योबड़े बंदर की तरह अनेक नाच नाचे। भावार्थ F-सरल और स्पष्ट है। ( ब्याख्या )- अंतिम चरण में प्रश्न है कि इतनी सम खुशामद करने पर हे सखि ! न जाने क्यों पान खवाते ही नायिकाने अपने पति पर क्रोध किया ? इस प्रश्न का उत्तर अति गुप्त रीति से उसी छंद के अन्तिम शब्दों में छिपा हुआ है- अर्थात् पान खवाते समय कुछ चिन्ह नायक के श्रङ्ग में ऐसे देखे जिनसे उसको शात हुआ कि "पिया पर नारि रच्यो", यह नायक पर स्त्री से अनुरक्त है । इली से कोप किया। (पुनः) मूल-हास बिलास निवास है केशव केलि विधान निधान दुनी मैं । देवर जेठ पिता सुसहोदर है सुख ही मय बात सुनी मैं ॥ भोजन भाजन भूषण मौन भरो जस पावन देव धुनी मैं । क्यों सब जामिन रोवति कामिनि कंत करै सुभ गान गुनी मैं- भावार्थ--कोई सखी सखी प्रति कहती है कि वह नायिका हास बिलास की निवासस्थान है, और दुनिया में सब प्रकार के केलि विवान की निधान है अर्थात् काम केलि कला में निपुण है। देवर, जेड, पिता, भाई, सब हैं, मैने सुना है कि उसको सब प्रकार की सुख सामग्री भी प्राप्त है, भोजन, भाजन, भूषण से घर भरा है, गंगा के समान पवित्र यश भी है, और उसका पति सी गुनी जनों में उसकी प्रशंसा करता है, तब क्या कारण है कि वह कामिनी (कास न्यथा से पीड़ित) सारी रात रोती रहती है?