पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/४१६

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सोरहवां प्रभाव (व्याख्या)--प्रश्न है कि सुख की सब सामग्री होते हुए भी वह क्यों दुखी रहती है ? इसका उत्तर बहुत गुप्त रीति से इसी छंद के अंतिम शब्दों में छिपा है अर्थात् वह दूसरी सखी कहती है कि "सुभगा न गुनी मैं" । मैं ने गुनकर जान लिया कि वह सुभगा नहीं है। "सुभगा'वह स्त्री जो सुन्दर हो और उसका पति उसपर अनुरक हो। (पुनः) मल-नाह नयो नित नेह नयो पर नारि त्यों केशव क्यों हूँ न जोवै । रूप अनुपम भूपर भूप सो आनँद रूप नहीं गुन गोय ॥ भौन भरी सब संपति दंपति श्रीपति ज्यों सुख सिंधु न सोवै । देव सो देवर प्रान सो पूत सु कौन दसा सुदती जेहि रोवै॥४६॥ शब्दार्थ---त्यो = तरफ। जोवे - देखता है। श्रीपति-पति सहित लक्ष्मी । सुदती= सुंदर दांतों वाली (जिसके दांत अति सुन्दर हैं। भावार्थ f-सरलता से समझा जाता है। (व्याख्या)-प्रश्न है कि सब बातें अनुकूल होते हुए भी इस सुदती की क्या दशा है जो यह रोती है ? इसका उत्तर अंतिम १० अक्षरों में है--नंद सासु दतो जेहि रोवै ननद और सास्तु दती रहती हैं (लड़तो रहती हैं) इसी से यह रोती रहती है। (एकानेकोत्तर वर्णन) मूल - एकहि उत्तर में जहां उत्तर गूढ़ अनेक । उत्तर एकानेक तेहि वरनल सहित बिबेक ॥५०॥ भावार्थ-पकही उत्तर में अनेक उत्तर निकलें, उसे एकानेको- तर अलंकार कहते हैं। परंतु अनेक उत्सर इस प्रकार निक-